“धारा 138 एन.आई. एक्ट के तहत चेक बाउंस मामलों में प्रत्यास्थ अनुमान और उसका खंडन: दिल्ली हाईकोर्ट का नवीनतम निर्णय”
पूरा लेख:
भूमिका:
दिल्ली उच्च न्यायालय ने S. A. Gaur बनाम राज्य (NCT of Delhi) में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिनांक 3 जुलाई 2025 को दिया, जिसमें अदालत ने नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138, 118(a) और 139 के तहत प्रत्यास्थ अनुमान (presumption) और उसके खंडन (rebuttal) की प्रक्रिया को विस्तार से स्पष्ट किया। यह फैसला Crl. Appeal No. 560 of 2020 में सुनाया गया।
मामले की पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ता पर आरोप था कि उसने किसी ऋण या देनदारी के निपटान हेतु एक चेक जारी किया था, जो अनादृत (dishonoured) हो गया। इसके आधार पर शिकायतकर्ता ने एन.आई. एक्ट की धारा 138 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई थी।
कानूनी प्रावधानों की व्याख्या:
- धारा 138, एन.आई. एक्ट:
यह प्रावधान उस स्थिति में अपराध स्थापित करता है जब किसी वैध देनदारी या ऋण के भुगतान हेतु जारी किया गया चेक बाउंस हो जाता है। - धारा 118(a) और 139, एन.आई. एक्ट:
ये धाराएं एक प्रत्यास्थ अनुमान (rebuttable presumption) प्रस्तुत करती हैं कि:- चेक को किसी ऋण या वैध देनदारी के भुगतान हेतु जारी किया गया था।
- जब तक विपरीत साबित न हो, यह माना जाएगा कि चेक वैध उद्देश्य के लिए दिया गया।
अदालत का निर्णय और विश्लेषण:
- प्रत्यास्थ अनुमान का खंडन संभव:
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि धारा 118(a) और 139 के अंतर्गत उत्पन्न अनुमान निर्विरोध या अपराजेय नहीं है, बल्कि प्रत्यास्थ है — अर्थात इसे खंडित किया जा सकता है। - प्रतिवादी द्वारा संभाव्य बचाव (Probable Defence):
यदि अभियुक्त यह संभाव्यता के आधार पर दिखा सके कि या तो ऋण था ही नहीं, या वह चुका दिया गया था, या चेक किसी अन्य कारण से जारी किया गया था, तो वह अनुमान खंडित हो सकता है। - बोझ का स्थानांतरण:
एक बार जब अभियुक्त प्रथमदृष्टया संभाव्यता स्थापित कर देता है, तो अब यह कानूनी दायित्व शिकायतकर्ता पर आ जाता है कि वह देनदारी के अस्तित्व को ठोस साक्ष्य द्वारा सिद्ध करे। - शिकायतकर्ता का दायित्व:
यदि शिकायतकर्ता ऐसा करने में विफल रहता है, तो केवल चेक की प्रस्तुति मात्र से अपराध सिद्ध नहीं होगा और शिकायत स्वतः खारिज कर दी जाएगी।
न्यायालय का निष्कर्ष:
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में पाया कि अपीलकर्ता ने एक संभाव्य बचाव प्रस्तुत किया, जिससे अनुमान खंडित हो गया और शिकायतकर्ता यह सिद्ध नहीं कर सका कि वास्तव में कोई वैध देनदारी मौजूद थी। इस आधार पर शिकायत को खारिज करते हुए अपील स्वीकार की गई।
न्यायिक महत्व:
यह निर्णय चेक बाउंस मामलों में आरोपियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि वे केवल सुसंगत स्पष्टीकरण देकर भी शिकायतकर्ता के अनुमान को चुनौती दे सकते हैं। साथ ही यह भी कि केवल चेक का अस्तित्व और बाउंस होना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि वैध देनदारी तथ्यतः सिद्ध न हो।
निष्कर्ष:
“S. A. Gaur बनाम राज्य (NCT of Delhi)” का निर्णय भारतीय न्यायिक व्यवस्था में चेक बाउंस मामलों की दायित्व संरचना को समझने के लिए एक मार्गदर्शक मिसाल के रूप में सामने आता है। यह संतुलन बनाता है कि दोषी को सजा मिले, पर निर्दोष व्यक्ति को मात्र तकनीकी धारणा के आधार पर दोषी न ठहराया जाए।