“HLV Limited (पूर्व में Hotel Leelaventure Pvt. Ltd.) बनाम PBSAMP Projects Pvt. Ltd.: Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 31(7)(b) के अंतर्गत ‘समय-पर्यंत ब्याज’ एवं ‘संयुक्त ब्याज’ के दायरे’” रखा गया है। इसमें इस मामला, उसके तथ्य, न्यायालय-निर्णय, विश्लेषण और भविष्य-दिशाएँ व्यापक रूप से देखी गई हैं।
प्रस्तावना
विवादितता से भरपूर वाणिज्यिक मध्यस्थता-क्षेत्र में एक बहुत ही महत्वपूर्ण निर्णय Supreme Court of India (सुप्रीम कोर्ट) द्वारा दिया गया है — कि जब मध्यस्थता पुरस्कार (arbitral award) में ऐसा ब्याज-अनुपात (interest regime) तय हो गया हो जो कारण उत्पत्ति के समय से लेकर भुगतान तक सम्पूर्ण अवधि को कवर करता हो, तो बाद में निष्पादन (execution) के समय उसके ऊपर अतिरिक्त या संयुक्त-(compound) ब्याज (interest on interest) मांगना संभव नहीं होगा, विशेष रूप से धारा 31(7)(b) के आधार पर।
यह निर्णय मध्यस्थता-कानून में “पार्टी-स्वायत्तता” (party autonomy) एवं “पुरस्कार-अंतिमता” (finality of award) के सिद्धांतों को पुष्ट करता है, और निष्पादन-प्रक्रिया में न्यायालयों द्वारा पुरस्कार को पुनर्लेखित (rewrite) किए जाने की संभवत: प्रवृत्ति पर अंकुश लगाता है।
आइए इस निर्णय को विस्तार से देखें — पहले तथ्य-पृष्ठभूमि, फिर विधिक प्रावधान व विवाद, उसके बाद न्यायालय-निर्णय, विश्लेषण एवं निष्कर्ष/भविष्य-दिशा।
तथ्य-पृष्ठभूमि
- HLV Limited (पूर्व में “Hotel Leelaventure Pvt. Ltd.”) और PBSAMP Projects Pvt. Ltd. ने 9 अप्रैल 2014 को एक Memorandum of Understanding (MoU) किया था, जिसके अंतर्गत HLV Limited ने हैदराबाद के बांजारा हिल्स क्षेत्र में एक प्रमुख भू-खंड (लगभग 3 एकड़ 28 गुन्टा) बेचने-वाले का प्रस्ताव दिया था।
- PBSAMP ने उक्त भू-खंड के लिये अग्रिम भुगतान (advance) के रूप में ₹ 15.5 करोड़ चुकाए। बाद में दोनों पक्षों के बीच मतभेद उत्पन्न हुए और MoU को समाप्त कर दिया गया (टर्मिनेशन) — 9 अक्टूबर 2024 को। विवाद मध्यस्थता के लिए भेजा गया।
- मध्यस्थता-ट्रिब्यूनल ने 8 सितंबर 2019 को पुरस्कार (award) दिया — जिसमें HLV Limited को PBSAMP को ₹ 15.5 करोड़ लौटाने का निर्देश दिया गया, साथ ही उस राशि पर 21% प्रति वर्ष साधारण ब्याज (simple interest) देना था, “भुगतान किए जाने तक” अर्थात अग्रिम भुगतान की तिथि से लेकर वास्तविक पुनर्भुगतान की तिथि (date of repayment) तक।
- HLV ने पुरस्कार को चुनौती दी थी (धारा 34 के अंतर्गत) लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था, जिससे पुरस्कार अंतिम हो गया। HLV ने निष्पादन-प्रक्रिया में ₹ 44.42 करोड़ चुकाए (₹ 44,42,05,254) विभिन्न तिथियों पर 2022-23 में, यह दावा करते हुए कि यह पूरी देय राशि-सहित ब्याज भुगतान है।
- PBSAMP ने निष्पादन (execution) प्रक्रिया में दावा किया कि उन्हें उस 21% ब्याज के अलावा संयुक्त-ब्याज (compound interest) प्राप्त होना चाहिए — अर्थात “ब्याज पर ब्याज” के रूप में। अतः उन्होंने धारा 31(7)(b) के अंतर्गत और ब्याज मांग की। HLV ने कहा कि MoU-और-पुरस्कार द्वारा ब्याज-अनुबंध पहले से बंद है; इसलिए अतिरिक्त ब्याज नहीं देना चाहिए।
- निष्पादन-न्यायालय ने PBSAMP के इस दावे को ठुकरा दिया। इसके बाद उच्च न्यायालय (High Court) ने निष्पादन-न्यायालय का आदेश रद्द कर मामला ब्याज-मामले के पुनरावलोकन हेतु लौटाया।
- HLV ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, और सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर 2025 को यह दृष्टांत निर्णय दिया कि निष्पादन-दौर में अतिरिक्त या संयुक्त-ब्याज का दावा संभव नहीं है जब पुरस्कार ने पूरी अवधि के लिए ब्याज तय कर दिया हो।
विधिक प्रावधान एवं विवाद की रूपरेखा
विधिक प्रावधान
- Arbitration and Conciliation Act, 1996 की धारा 31 (अध्याय V) मध्यस्थता-पुरस्कार (arbitral awards) द्वारा भुगतान योग्य “मुल्य” (sum) का प्रावधान करती है। विशेष रूप से धारा 31(7) इस प्रकार है:
“(7) (a) Unless otherwise agreed by the parties, the arbitral tribunal may award interest for the period between the date when the cause of action arose and the date of the award;
(b) The sum directed to be paid by the award shall carry interest at the rate specified therein, or, if not so specified, at the rate of 18 % per annum from the date of the award till payment.”शब्द-शः के लिये देखे।
- यहाँ महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि उप-धारा (a) में कहा गया है कि जब पार्टियों ने सहमति नहीं की हो, तो ट्रिब्यूनल को अधिकार है की वह पूर्व-पुरस्कार अवधि के लिये ब्याज दे; और उप-धारा (b) कहती है कि पुरस्कार द्वारा निर्देशित “राशि” (sum) को पुरस्कार-तिथि से भुगतान-तिथि तक ब्याज देना होगा — यदि पुरस्कार में दर नहीं बताई गयी हो तो 18 % प्रति वर्ष।
- इस प्रकार, पार्टियों द्वारा ब्याज-दर, अवधि आदि तय कर लेने की स्थिति में (मतलब ‘otherwise agreed’), ट्रिब्यूनल तथा निष्पादन-न्यायालय की भूमिका सीमित हो जाती है।
विवाद-रूपरेखा
- इस मामले में मुख्य विवाद यह था कि जब MoU और मध्यस्थता-पुरस्कार ने “विस्थापित अवधि” यानी अग्रिम देय तिथि से वास्तविक भुगतान-तिथि तक 21% साधारण ब्याज तय किया हो, तो क्या निष्पादन-दौर में उस राशि पर संयुक्त-ब्याज (interest on interest) या “ब्याज की ब्याज” का दावा किया जा सकता है, विशेष रूप से धारा 31(7)(b) के आधार पर?
- एक ओर PBSAMP का तर्क था कि चूंकि ट्रिब्यूनल ने 21% ब्याज तय किया था, फिर भी यह “राशि” (sum) थी जिसे पुरस्कार निर्देशित करता है — अतः धारा 31(7)(b) के अनुसार उस राशि पर पुरस्कार-तिथि से भुगतान-तिथि तक 18% या तय दर का ब्याज चलना चाहिये; और यदि 21% पहले से है, तो उसके उपर अतिरिक्त रूप से ब्याज लगाया जा सके।
- दूसरी ओर HLV तथा ट्रिब्यूनल का तर्क था कि MoU ने स्पष्ट रूप से कहा था “interest at the rate of 21% p.a. from the respective dates of disbursement till repayment” (देय तिथि से भुगतान तक) — यानी एक पूर्ण अवधि को कवर करने वाला ब्याज-रेखांकित किया गया था; इसलिए अतिरिक्त पोस्ट-पुरस्कार ब्याज या संयुक्त-ब्याज का दावा निष्पादन-दौर में नहीं हो सकता।
- निष्पादन-न्यायालय ने HLV के पक्ष में निर्णय दिया; लेकिन उच्च न्यायालय ने पुनरावलोकन हेतु मामला लौटा दिया। सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि निष्पादन-दौर में क्या निष्पादन-धारा (execution stage) पर ट्रिब्यूनल द्वारा प्रत्युत्तरित पुरस्कार को “लंबाई में पुनर्लेखित” (rewritten) किया जा सकता है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने निम्न-प्रमाण मुख्य बिंदुओं से अपना निर्णय प्रस्तुत किया:
(1) पार्टी-स्वायत्तता (Party Autonomy) का मूलश सिद्धांत
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मध्यस्थता-विधि का मूल आधार है पार्टियों की सहमति। ट्रिब्यूनल और निष्पादन-न्यायालय दोनों को पार्टियों द्वारा तय कर लिए गए ब्याज-अनुबंध (interest regime) का पालन करना चाहिए, न कि निष्पादन-दौर में उन नियमों से हटकर नया ब्याज-ब्यवस्था बनाना।
- विशेष रूप से, धारा 31(7)(a) में “Unless otherwise agreed by the parties…” की भाषा इस बात पर जोर देती है। यदि पार्टियों ने ब्याज-अनुबंध कर लिया है तो ट्रिब्यूनल-वासा अदिकरित नहीं होता।
(2) पुरस्कार द्वारा पूरी अवधि का ब्याज तय किया गया था — “समय-पर्यंत ब्याज” (Composite interest)
- MoU की धारा 6(b) (उदाहरणतः) ने स्पष्ट कहा था कि अग्रिम भुगतान (advance) पर ब्याज दर 21% प्रति वर्ष होगी और यह “from the respective dates of disbursement till repayment” (प्रत्येक वितरण की तिथि से लेकर पुनर्भुगतान तिथि तक) लागू होगी। ट्रिब्यूनल ने इस दर को पुरस्कार में शामिल कर लिया।
- न्यायालय ने माना कि यहाँ ब्याज-निर्देशण (directive) ने कारण उत्पत्ति की तिथि से लेकर वास्तविक पुनर्भुगतान तिथि तक अवधि को कवर किया है — यानी यह “पूर्व-पुरस्कार ब्याज + पुरस्कार-तिथि के बाद ब्याज” का सहज मिश्रण (composite) है। ऐसे में “राशि” (sum) के ऊपर बाद में अलग से ब्याज जोड़ने का आधार नहीं बचता।
(3) धारा 31(7)(b) का दायरा स्पष्ट किया गया
- न्यायालय ने कहा कि उप-धारा (b) तब लागू होती है जब पुरस्कार में ब्याज-दर नहीं बताई गयी हो या जब पुरस्कार में “राशि” पर ब्याज देने का निर्देश हो लेकिन ब्याज-दर न हो। ऐसे स्थिति में 18% प्रति वर्ष का डिफॉल्ट दर लागू होती थी।
- परंतु जब ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट रूप से एक ब्याज-दर और अवधि तय की हो — जैसे इस मामले में — तो उप-धारा (b) का डिफॉल्ट दर लागू नहीं हो सकती। इसे लागू करने का असमर्थन न्यायालय ने किया।
(4) निष्पादन-दौर में पुरस्कार का पुनर्लेखन (Modification) अस्वीकृत
- न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि निष्पादन-प्रक्रिया में निष्पादन-न्यायालय को पुरस्कार में निर्दिष्ट ब्याज-योजना के बाहर जाकर संख्या (amount) या ब्याज-योजना में बदलाव करने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसा किया गया तो essentially award को संशोधित करना होगा — जो विधि-दृष्टि से सही नहीं है।
- PBSAMP द्वारा प्रस्तावित संयुक्त-ब्याज (interest on interest) मांग इसी प्रकार का था — उसी पुरस्कार को निष्पादन चरण में “ब्याज-ब्याज” बतौर नए दायित्व के रूप में बढ़ाना। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अस्वीकृत किया।
(5) निष्कर्ष एवं आदेश
- सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें निष्पादन-न्यायालय के आदेश को पुनरावलोकन हेतु भेजा गया था। सुप्रीम ने निष्पादन-न्यायालय का आदेश पुनर्स्थापित किया जिसमें भुगतान को “पूरा एवं अंतिम” माना गया था।
- नतीजा यह हुआ कि PBSAMP को HLV के ऊपर अतिरिक्त राशि देने का अधिदान (entitlement) नहीं मिला — क्योंकि उन्होंने पुरस्कार द्वारा तय ब्याज-अनुबंध स्वीकार कर लिया था।
विश्लेषण
(अ) निर्णय का महत्व
- यह निर्णय मध्यस्थता-कानून के क्षेत्र में एक स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रदान करता है कि जब पार्टियों ने ब्याज-दर और अवधि पर सहमति कर ली हो तथा ट्रिब्यूनल ने उस अनुपात से फैसला किया हो, तो निष्पादन-प्रक्रिया में “ब्याज के ऊपर ब्याज” नहीं जोड़ा जा सकता।
- यह “पार्टी-स्वायत्तता” को प्रमुखता देता है — अर्थात् पार्टियों द्वारा प्रारंभ में स्थापित ब्याज-अनुबंध को मध्यस्थता-पुरस्कार एवं निष्पादन-प्रक्रिया द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए।
- साथ ही, यह “पुरस्कार-अंतिमता” (finality) की अवधारणा को मज़बूत करता है — एक बार निर्णय हो गया और निष्पादन-रूप दे दिया गया, तो निष्पादन-दौर में उसे पुनर्लेखित नहीं किया जाना चाहिए।
(ब) अन्य संबंधित न्याय-निर्णयों से तुलना
- पहले के मामलों में जैसे Hyder Consulting (UK) Ltd. v. Governor, State of Orissa ने यह माना था कि जब पुरस्कार में स्पष्ट ब्याज-निर्देश न हो, तो धारा 31(7)(b) के अंतर्गत “राशि” (principal + pre-award interest) पर 18% या तय दर से ब्याज चल सकेगा।
- लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय को इस तरह सीमित किया है कि वह केवल उन मामलों में लागू है जहाँ “पुरस्कार में ब्याज-दर/ अवधि स्पष्ट नहीं हो”। इस मामले में, पुरस्कार ने स्पष्ट ब्याज-दर/ अवधि बताई थी — अतः Hyder Consulting का सिद्धांत सीधे लागू नहीं हुआ।
- अन्य निर्णयों में जैसे Morgan Securities Pvt. Ltd. v. Videocon Industries Ltd. और Delhi Airport Metro Express Pvt. Ltd. v. Delhi Metro Rail Corporation Ltd. में भी यह पथप्रदर्शित हुआ है कि जब पार्टियों ने ब्याज-योजना तय की हो, तो ट्रिब्यूनल-वासा तथा निष्पादन-न्यायालय को उस योजना के बाहर नहीं जाना चाहिए। (परिस्थितियाँ-अनुसार)
- इस प्रकार यह निर्णय पिछले प्रवृत्तियों को आगे ले जाता है और मध्यस्थता निष्पादन-क्षेत्र को और स्पष्ट करता है।
(स) व्यावसायिक व व्यवहार-परिप्रेक्ष्य
- वाणिज्यिक लेन-देनों, अग्रिम भुगतान-संधियों, भू-खण्ड-विक्री आदि में अक्सर MoU या संधि (agreement) द्वारा ब्याज-दर और अवधि तय की जाती है। इस निर्णय से यह महत्वपूर्ण सीख निकलती है कि ऐसी संधियों में पुरस्कार-पूर्व एवं पुरस्कार-परोत्तर अवधि दोनों को समाहित करने वाला ब्याज-अनुबंध वस्तुतः निष्पादन-जटिलताओं को कम कर सकता है।
- विशेष रूप से, यदि संविदा में यह स्पष्ट हो कि ब्याज “भुगतान की तिथि तक चलने वाला” है, तो बाद में “ब्याज पर ब्याज” का दावा नाकाफी होगा। इससे विवाद-मुकदमों में समय, खर्च एवं जोखिम कम होगा।
- निष्पादन-दौर में पक्षों को इस निर्णय के आधार पर यह सलाह मिल सकती है कि वे प्रारंभ में ही ब्याज-योजना (दर, अवधि, साधारण/संयुक्त) को स्पष्ट करें तथा मध्यस्थता-पुरस्कार में इसे शामिल करवाएँ।
(द) सीमाएँ एवं प्रश्न उठने योग्य बिंदु
- यह निर्णय स्पष्ट रूप से उन मामलों पर है जहाँ पुरस्कार में ब्याज-दर/ अवधि स्पष्ट रूप से तय थी। यदि संधि या MoU में ब्याज-दर तो तय हो, लेकिन अवधि या “भुगतान-तिथि तक” नहीं कहा हो, तो क्या स्थिति होगी? निर्णय स्पष्ट रूप में इस पर सीमित प्रमाण देता है।
- संयुक्त-ब्याज के दावे-विवाद में गणना-पद्धति, भुगतान-तिथि, उपलब्धि (accrual) आदि मुद्दे हो सकते हैं — इस निर्णय ने उन्हें विस्तार से नहीं छुआ है।
- व्यावहारिक निष्पादन-प्रक्रिया में जब भुगतान चक्र अलग-अलग तिथियों पर हुआ हो, तो “दिन-गणना” (day-count) एवं ब्याज-कैलकुलेशन की समस्या आगे बनेगी।
- अंतिम रूप से, यह निर्णय मध्यस्थता-प्रवर्तन (arbitration enforcement) के दृष्टिकोण से केंद्रित है; लेकिन यदि संधि-लेन-देह (contractual) में स्पष्ट न हो तो न्यायालयों को निर्णय-परिणाम (award) पुनः खोलना पड़ सकता है।
निष्कर्ष एवं भविष्य-दिशा
इस प्रकार, इस निर्णय से निम्न-निष्कर्ष निकलते हैं:
- जब पार्टियों ने समझौते (MoU/संविदा) में ब्याज-दर एवं अवधि स्पष्ट रूप से तय की हो, और ट्रिब्यूनल ने उसी के अनुरूप पुरस्कार दिया हो — खासकर यदि “कारण उत्पत्ति-तिथि से भुगतान-तिथि तक” ब्याज तय हुआ हो — तो निष्पादन-दौर में संयुक्त-(compound) ब्याज का दावा नहीं स्वीकार होगा।
- यह निर्णय मध्यस्थता-क्षेत्र में “पक्ष-स्वायत्तता” एवं “पुरस्कार-अंतिमता” को पुनः पुष्ट करता है, और निष्पादन-न्यायालयों को पुरस्कार को पुनर्लेखित करने से रोकता है।
- व्यावसायिक व्यवहार-क्षेत्र में यह एक संकेत है कि अग्रिम भुगतान-संधियों व गठनों (agreements) में ब्याज-योजना को स्पष्ट एवं व्यापक रूप से तैयार करना चाहिए — ताकि बाद में निष्पादन-विवाद न हो।
- भविष्य में यह देखा जाना चाहिए कि क्या यह निर्णय उन मामलों पर कैसे लागू होगा जहाँ संधि में ब्याज-दर तो तय हो लेकिन अवधि “भुगतान-तिथि तक” स्पष्ट नहीं हो — क्या वहाँ संयुक्त-ब्याज का दावा खुला रहेगा? साथ ही, मध्यस्थता-पुरस्कार में गणना-पद्धति (interest calculation) को और स्पष्ट करने की आवश्यकता महसूस होती है।
- विधि-प्रणाली के विकास के दृष्टिकोण से, इस तरह के निर्णय से मध्यस्थता-प्रवर्तन में गति और निश्चितता बढ़ सकती है — क्योंकि पक्षों को पता होगा कि निष्पादन-दौर में “नए दायित्व” नहीं जोड़े जा सकते यदि पुरस्कार ने ब्याज-योजना पूरी कर दी हो।