“नाबालिग के गुप्तांगों को छूना: POCSO Act में परिभाषा और सुप्रीम कोर्ट का Laxman Jangde v. State of Chhattisgarh केस में दिशानिर्देश”
1. प्रस्तावना
भारत में नाबालिगों के यौन शोषण के खिलाफ कानून सख्त हैं और बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देने के लिए विशेष प्रावधान बनाए गए हैं। इन प्रावधानों में POCSO Act, 2012 (Protection of Children from Sexual Offences Act) प्रमुख है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले Laxman Jangde v. State of Chhattisgarh ने इस कानून की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मोड़ दिया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नाबालिग के गुप्तांगों को छूना, बिना प्रवेशात्मक कृत्य के, POCSO Act के तहत बलात्कार या प्रवेशात्मक यौन अपराध नहीं माना जाएगा, बल्कि यह यौन उत्पीड़न के तहत आता है।
यह निर्णय न केवल इस मामले के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि पूरे न्यायिक दृष्टिकोण और यौन अपराधों के कानूनी परिभाषा को प्रभावित करता है। इस फैसले ने POCSO Act की धारा 6, 7, 9(म), और IPC की धारा 354 के दायरे को स्पष्ट किया है।
2. मामले का पृष्ठभूमि
Laxman Jangde मामला छत्तीसगढ़ का था, जिसमें आरोपी पर नाबालिग लड़की (12 वर्ष से कम आयु) के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप था। आरोप था कि आरोपी ने पीड़िता के गुप्तांगों को छुआ और अपने गुप्तांग को भी छुआ।
- पीड़िता की उम्र: 12 वर्ष से कम
- अपराध का प्रकार: बिना प्रवेशात्मक कृत्य के गुप्तांग छूना
- प्रारंभिक सजा: भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376एबी और POCSO Act की धारा 6 के तहत 20 साल का कठोर कारावास।
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने प्रारंभ में इसी आधार पर सजा सुनाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों और कानूनी प्रावधानों के आधार पर दोषसिद्धि और सजा में संशोधन किया।
3. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु स्पष्ट किए:
- गुप्तांग छूना बलात्कार नहीं:
बिना प्रवेशात्मक कृत्य के नाबालिग के गुप्तांग को छूना IPC की धारा 375/376A या POCSO Act की धारा 6 के तहत बलात्कार या प्रवेशात्मक यौन अपराध नहीं है। - POCSO Act के तहत अपराध:
ऐसा कृत्य POCSO Act की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध है। अगर पीड़िता की उम्र 12 वर्ष से कम है तो यह POCSO Act की धारा 9(म) के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा। - IPC की धारा 354:
इस कृत्य को IPC की धारा 354 के तहत “महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने” वाला अपराध माना गया। - सजा में संशोधन:
दोषसिद्धि को IPC धारा 376A और POCSO धारा 6 के तहत रद्द कर दिया गया और इसे POCSO धारा 10 और IPC धारा 354 के तहत परिवर्तित किया गया। इसके अनुसार:- IPC धारा 354 के तहत 5 वर्ष का कठोर कारावास
- POCSO Act की धारा 10 के तहत 7 वर्ष का कठोर कारावास
- ₹50,000 का जुर्माना पीड़िता को मुआवजे के रूप में देने का आदेश
4. POCSO Act के प्रावधान और उनकी व्याख्या
POCSO Act, 2012 का मुख्य उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से सुरक्षा देना है। इसमें अपराधों की श्रेणियाँ बनाई गई हैं, जैसे:
- बलात्कार (धारा 3)
- प्रवेशात्मक यौन अपराध (धारा 5)
- यौन उत्पीड़न (धारा 7)
- गंभीर यौन उत्पीड़न (धारा 9)
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि नाबालिग के गुप्तांगों को छूना, बिना प्रवेश के, बलात्कार या प्रवेशात्मक यौन अपराध नहीं है, लेकिन यह गंभीर यौन उत्पीड़न में आता है यदि पीड़िता 12 वर्ष से कम आयु की है।
यह व्याख्या कानून में स्पष्टता प्रदान करती है और भविष्य में ऐसे मामलों के निर्णय में मार्गदर्शन करेगी।
5. कानूनी विश्लेषण
(क) IPC धारा 354 और POCSO Act की धाराएँ
- IPC धारा 354: महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले कार्यों पर सजा निर्धारित करती है।
- POCSO Act धारा 7: यौन उत्पीड़न की परिभाषा प्रदान करती है।
- POCSO Act धारा 9(म): गंभीर यौन उत्पीड़न को परिभाषित करती है।
- POCSO Act धारा 6: प्रवेशात्मक यौन अपराध को परिभाषित करती है।
(ख) सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यौन उत्पीड़न की परिभाषा में प्रवेश की आवश्यकता नहीं होती। गुप्तांग छूना, चाहे प्रवेश न हो, भी गंभीर यौन उत्पीड़न में आता है अगर पीड़िता नाबालिग हो।
यह स्पष्ट विभाजन न केवल कानून में स्पष्टता लाता है बल्कि भविष्य में POCSO Act की धारा 6 और 7 के दायरे को स्पष्ट करता है।
6. सामाजिक और न्यायिक दृष्टिकोण
(क) नाबालिगों की सुरक्षा
इस निर्णय ने यह सुनिश्चित किया कि नाबालिग बच्चों की यौन सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं हो सकता। भले ही प्रवेश न हुआ हो, गुप्तांग छूने जैसी हरकत को गंभीर अपराध माना गया है।
(ख) न्यायपालिका का दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यौन अपराधों की पहचान केवल प्रवेश पर निर्भर नहीं करती, बल्कि पीड़िता की उम्र और कृत्य की प्रकृति महत्वपूर्ण होती है।
(ग) सामाजिक जागरूकता
इस फैसले ने समाज में नाबालिगों के प्रति यौन अपराधों के प्रति जागरूकता बढ़ाई है। यह निर्णय कानून के दायरे को स्पष्ट करता है और यौन अपराधों के प्रति समाज को सतर्क करता है।
7. आलोचनाएँ और विचार
(क) समर्थक दृष्टिकोण
कानूनविद और महिला अधिकार संगठन इसे एक महत्वपूर्ण निर्णय मानते हैं क्योंकि इसने यौन उत्पीड़न की परिभाषा में स्पष्टता लाकर बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की है।
(ख) आलोचक दृष्टिकोण
कुछ विद्वान मानते हैं कि इससे कानून की जटिलता बढ़ सकती है और अभियोजन पक्ष को यह साबित करने में कठिनाई हो सकती है कि बिना प्रवेश के भी गुप्तांग छूना गंभीर यौन उत्पीड़न है।
8. केस का कानूनी महत्व
Laxman Jangde केस कई मायनों में मील का पत्थर है:
- यह POCSO Act की धारा 6, 7, और 9(म) के व्याख्यात्मक विस्तार में मार्गदर्शन देता है।
- यह यौन अपराधों के तहत “प्रवेश” और “गुप्तांग छूने” के बीच अंतर स्पष्ट करता है।
- यह भविष्य में यौन अपराधों के मामलों में अदालतों के लिए एक मार्गदर्शक बन सकता है।
9. निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल Laxman Jangde v. State of Chhattisgarh मामले में न्याय सुनिश्चित करता है, बल्कि यह भारत में नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के खिलाफ कानूनी दृष्टिकोण को मजबूत करता है।
यह स्पष्ट करता है कि:
“बिना प्रवेश के भी नाबालिग के गुप्तांग छूना यौन उत्पीड़न का गंभीर अपराध है और इसका दंड POCSO Act और IPC के प्रावधानों के तहत दिया जाएगा।”
इस फैसले ने POCSO Act की धाराओं की व्याख्या में स्पष्टता दी है और भविष्य में यौन अपराध मामलों में अदालतों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल पेश की है। यह निर्णय समाज में नाबालिगों की सुरक्षा और यौन अपराधों के प्रति न्यायिक जागरूकता बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगा।
1. इस फैसले का मुख्य सार क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने Laxman Jangde केस में स्पष्ट किया कि नाबालिग के गुप्तांग को बिना प्रवेश के छूना, IPC की धारा 375/376A या POCSO Act की धारा 6 के तहत बलात्कार या प्रवेशात्मक यौन अपराध नहीं है। ऐसे कृत्य को POCSO Act की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न और 9(म) के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा, यदि पीड़िता 12 वर्ष से कम आयु की है। अदालत ने सजा घटाकर IPC धारा 354 के तहत पाँच वर्ष और POCSO Act धारा 10 के तहत सात वर्ष के कठोर कारावास किया। जुर्माना 50,000 रुपये पीड़िता को देने का आदेश दिया गया। यह निर्णय यौन अपराधों की परिभाषा में स्पष्टता लाता है और भविष्य में POCSO Act के मामलों के लिए महत्वपूर्ण मिसाल बनेगा।
2. यह फैसला किस मामले से जुड़ा है?
यह निर्णय Laxman Jangde v. State of Chhattisgarh मामले में आया। आरोपी पर 12 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप था। आरोप था कि आरोपी ने पीड़िता के गुप्तांगों को छुआ और अपने गुप्तांग को भी छुआ, पर कोई प्रवेशात्मक कृत्य नहीं हुआ। प्रारंभ में ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने IPC धारा 376A और POCSO धारा 6 के तहत 20 साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों का विश्लेषण कर दोषसिद्धि और सजा को संशोधित किया, और इसे POCSO धारा 10 और IPC धारा 354 के तहत परिवर्तित किया।
3. POCSO Act में गुप्तांग छूने का अपराध किस तरह परिभाषित है?
POCSO Act, 2012 में यौन अपराधों को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है। धारा 7 में यौन उत्पीड़न और धारा 9(म) में गंभीर यौन उत्पीड़न का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि बिना प्रवेश के नाबालिग के गुप्तांग को छूना, बलात्कार या प्रवेशात्मक यौन अपराध नहीं है। यह अपराध POCSO Act की धारा 7 के तहत यौन उत्पीड़न और 9(म) के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न में आता है यदि पीड़िता 12 वर्ष से कम आयु की हो। यह निर्णय कानून में स्पष्टता लाने वाला है।
4. IPC धारा 354 का इस फैसले में क्या महत्व है?
IPC धारा 354 “महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने” वाले कार्यों पर आधारित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्पष्ट किया कि बिना प्रवेश के गुप्तांग छूने का कृत्य IPC धारा 354 के तहत आता है। यह निर्णय दर्शाता है कि यौन अपराध केवल प्रवेश तक सीमित नहीं हैं, बल्कि किसी की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले सभी कृत्य कानून के दायरे में आते हैं। इसलिए, यह धारा यौन उत्पीड़न के मामलों में महत्वपूर्ण आधार बनती है।
5. सुप्रीम कोर्ट ने सजा में क्या बदलाव किया?
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई 20 साल की सजा को घटाकर संशोधित किया। दोषसिद्धि को IPC धारा 376A और POCSO धारा 6 के तहत रद्द कर दिया गया। इसके बजाय, आरोपी को IPC धारा 354 के तहत 5 वर्ष और POCSO धारा 10 के तहत 7 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई। साथ ही ₹50,000 का जुर्माना पीड़िता को देने का आदेश दिया गया। यह सजा इस बात को दर्शाती है कि अदालत ने अपराध की प्रकृति और साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए संतुलित निर्णय लिया।
6. इस फैसले का महिला और बच्ची अधिकारों पर प्रभाव क्या है?
यह फैसला बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यौन अपराधों की पहचान में प्रवेश की आवश्यकता नहीं है। नाबालिग के साथ ऐसा कृत्य गंभीर यौन उत्पीड़न है, जिससे बच्चों के गरिमा और सुरक्षा पर असर पड़ता है। यह निर्णय नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के मामलों में न्यायपालिका के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है और भविष्य में ऐसी घटनाओं में सख्ती बढ़ाने में मदद करेगा।
7. सामाजिक दृष्टिकोण से इस फैसले का महत्व क्या है?
इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया है कि नाबालिग बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामले में न्यायपालिका को स्पष्ट दिशानिर्देश मिलेंगे। यह निर्णय समाज में यौन अपराधों के प्रति जागरूकता बढ़ाने का काम करेगा। गुप्तांग छूने जैसे कृत्य को गंभीर यौन उत्पीड़न मानना समाज में बच्चों के प्रति सुरक्षा की भावना को मजबूत करता है और भविष्य में अपराधियों को चेतावनी देता है।
8. इस फैसले का कानूनी महत्व क्या है?
Laxman Jangde केस ने POCSO Act और IPC की धाराओं की व्याख्या में स्पष्टता दी है। यह निर्णय भविष्य में यौन अपराधों के मामलों में मार्गदर्शन करेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना प्रवेश के भी यौन अपराध गंभीर होते हैं और उनका दंड कानून के तहत निर्धारित किया जाएगा। यह फैसला POCSO Act के प्रभावी कार्यान्वयन में एक मील का पत्थर है।
9. आलोचनाएँ इस फैसले पर क्या हैं?
कुछ कानूनी विद्वान मानते हैं कि इस फैसले से कानून की जटिलता बढ़ सकती है और अभियोजन पक्ष को साबित करने में कठिनाई होगी कि बिना प्रवेश का कृत्य गंभीर यौन उत्पीड़न है। वहीं, महिला अधिकार संगठन इसे महत्वपूर्ण निर्णय मानते हैं क्योंकि इसने बच्चों के अधिकारों और सुरक्षा को स्पष्ट किया है। इस तरह, यह फैसला कानून और समाज दोनों के लिए महत्वपूर्ण बहस का कारण बन सकता है।
10. भविष्य में इस फैसले का प्रभाव क्या होगा?
यह फैसला भविष्य में यौन अपराधों के मामलों में एक कानूनी मिसाल बनेगा। इससे POCSO Act की धारा 6, 7, और 9(म) के तहत अपराधों की स्पष्ट व्याख्या होगी। न्यायपालिका को ऐसे मामलों में दिशानिर्देश मिलेंगे और पीड़ित बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। यह निर्णय समाज में नाबालिगों के प्रति यौन अपराधों की गंभीरता को स्वीकारने में एक मजबूत कदम है।