मुस्लिम विधि में विवाह (निकाह) की परिभाषा, प्रकृति एवं आवश्यक शर्तें, तथा मेहर की अवधारणा
1. परिचय
मुस्लिम विधि में विवाह (Nikah) एक अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक एवं धार्मिक संस्था है, जो पति-पत्नी के बीच वैध संबंध स्थापित करती है। इस्लामी दृष्टिकोण से निकाह केवल शारीरिक एवं भावनात्मक संबंध का साधन ही नहीं, बल्कि एक नैतिक, सामाजिक और धार्मिक दायित्व भी है। यह संस्था कुरआन, हदीस और इस्लामी न्यायशास्त्र पर आधारित है। मुस्लिम समाज में विवाह को “आधा ईमान” पूरा करने वाला कार्य माना गया है।
2. विवाह (निकाह) की परिभाषा
फ़िक़्ह के अनुसार —
“निकाह एक ऐसा संविदा (Contract) है, जिसके द्वारा एक पुरुष और एक स्त्री एक-दूसरे के साथ वैध रूप से पति-पत्नी के रूप में जीवन व्यतीत करने और एक-दूसरे के अधिकारों एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए सहमत होते हैं।”
कुरआन में इसे “मिसाक़-ए-ग़लीज़” (अत्यंत गंभीर अनुबंध) कहा गया है।
हदीस के अनुसार — “निकाह मेरी सुन्नत है, और जो मेरी सुन्नत से मुँह मोड़े, वह मुझसे नहीं है।”
3. विवाह की प्रकृति
मुस्लिम विधि में निकाह की प्रकृति दो दृष्टियों से समझी जा सकती है —
- धार्मिक दृष्टि से – यह एक इबादत (पूजनीय कार्य) है, जो समाज की नैतिकता और पवित्रता को बनाए रखने का साधन है।
- कानूनी दृष्टि से – यह एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट है, जिसमें प्रस्ताव (Ijab) और स्वीकृति (Qubool) आवश्यक हैं। यह संपत्ति, उत्तराधिकार, मेहर, भरण-पोषण आदि कानूनी अधिकार और कर्तव्य प्रदान करता है।
4. विवाह की आवश्यक शर्तें
मुस्लिम विधि के अंतर्गत विवाह की वैधता के लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक हैं —
(A) पक्षकारों की पात्रता
- धर्म – दोनों मुस्लिम हों, किंतु पुरुष किताबिया (ईसाई या यहूदी स्त्री) से विवाह कर सकता है।
- आयु – बालिग़ होना (प्यूबर्टी की आयु सामान्यतः 15 वर्ष मानी जाती है)।
- मानसिक स्थिति – दोनों पक्षकार समझदार (Sane) हों।
- रिश्ते में प्रतिबंध – रक्त, दूध (रज़ाअत) और ससुराल संबंध के आधार पर निषिद्ध संबंध में न हों।
(B) प्रस्ताव और स्वीकृति (Ijab-o-Qubool)
- विवाह समारोह में एक पक्ष द्वारा प्रस्ताव और दूसरे पक्ष द्वारा उसी बैठक में स्पष्ट स्वीकृति।
- यह प्रक्रिया एक ही समय और स्थान पर होनी चाहिए।
(C) गवाह
- सुन्नी विधि – कम से कम दो पुरुष या एक पुरुष और दो महिला मुस्लिम गवाह आवश्यक।
- शिया विधि – गवाह की उपस्थिति अनिवार्य नहीं, किंतु मेहर का निर्धारण आवश्यक है।
(D) मेहर (Dower)
- निकाह का अभिन्न अंग, जिसके बिना विवाह अपूर्ण माना जाता है।
5. मेहर (Dower) की अवधारणा
परिभाषा – मेहर वह धनराशि या संपत्ति है, जो पति द्वारा पत्नी को विवाह के समय या विवाह के पश्चात किसी भी समय, विवाह के प्रतिफलस्वरूप, सम्मान एवं सुरक्षा के प्रतीक के रूप में दी जाती है।
कुरआन (सूरा-निसा, आयत 4) में आदेश है —
“और औरतों को उनका मेहर खुशी से अदा करो।”
6. मेहर के प्रकार
- मुसम्मा (Specified Dower)
- विवाह के समय तय की गई राशि।
- इसे आगे दो भागों में बाँटा जाता है:
- तुरंत देय (Prompt Dower) – पत्नी की मांग पर तुरंत अदा किया जाना चाहिए।
- विलंबित (Deferred Dower) – तलाक, मृत्यु या निर्धारित समय पर देय।
- मिस्ल (Proper Dower)
- यदि मेहर विवाह के समय तय नहीं हुआ, तो पत्नी की योग्यता और परिवार की परंपरा के अनुसार तय किया जाता है।
7. मेहर का महत्व
- स्त्री का वित्तीय अधिकार – पत्नी के आर्थिक अधिकार और सम्मान की रक्षा करता है।
- विवाह की शर्त – निकाह की वैधता का महत्वपूर्ण तत्व।
- सुरक्षा कवच – पति द्वारा अन्याय या तलाक की स्थिति में पत्नी को आर्थिक सहारा देता है।
- धार्मिक आदेश – कुरआन और सुन्नत में अनिवार्य।
8. निष्कर्ष
मुस्लिम विधि में विवाह एक पवित्र और कानूनी अनुबंध है, जिसका उद्देश्य समाज में नैतिकता, शुचिता और पारिवारिक स्थिरता बनाए रखना है। इसमें मेहर न केवल विवाह की शर्त है, बल्कि स्त्री की गरिमा और अधिकारों की रक्षा का प्रतीक भी है। निकाह तभी वैध और पूर्ण माना जाता है, जब सभी आवश्यक शर्तें — प्रस्ताव-स्वीकृति, गवाह, पात्रता और मेहर — पूरी की जाएँ।